अकबर बीरबल की कहानियाँ
जो दोस्त कठिनाई में साथ देता है वही सच्चा दोस्त होता है।
आम का मोह – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग
हर कार्य को करने से पहले अच्छी तरह सोचना चाहिए।
उनके शिक्षक ने छात्रो को हिदायत दे रखी थी की निरीक्षक पर आप सब का अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए. जब निरीक्षक गाँधी जी की क्लास में आये तो उन्होंने बच्चो की परीक्षा लेने के लिए छात्रो को पांच शब्द बताकर उनके वर्तनी लिखने को कहा.
थोड़ी दूर आगे चलने पर व्यक्ति को एक वृद्ध मिला जिसकी गाड़ी पूरी तरह कीचड़ में फस चुकी थी और उसका निकलना मुश्किल सा हो गया था, व्यक्ति की हिष्ट-पुष्ट शरीर को देखकर उस बुजुर्ग ने उसे आवाज लगाया, बेटा क्या तुम मेरे गाड़ी को कीचड़ से निकालने में मेरी मदद करोगे।
“At 40 a long time aged, and acquiring struggled with obesity all my life (I was at 5’6″ and weighed 360 kilos), I shed and retained off much more than 180 lbs . by utilizing hypnosis. I didn’t want to invest my total lifetime becoming sad, frustrated and obese. I couldn’t stand it any more And that i understood if I didn’t modify I had been planning to die. I needed more. I wanted to be joyful, healthier and full of like and existence. From that perspective, I started out on my journey to alter how my head believed and worked.
इतने में वह व्यक्ति आ गया जिसका इंतज़ार किया जा रहा था, उसकी सांस तेज़ चल रही थी (हांफ रहा था) और उसके कपडे भी गीले थे, उस व्यक्ति ने महर्षि को झुककर प्रणाम किया और विनम्रता के साथ उनके सामने खड़ा हो गया।
'क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री को भेंट दें', मिल मालिक अधिकार जताता हुआ कहने लगा।
जो आपको गाँधी जी के जीवन की गहराई और उनके जीवन सिद्धांतो से प्रेरणा देंगे.
महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं.
“खरीदें?”, कंजूस ने कहा। “मैंने कभी कुछ खरीदने के लिए सोने का इस्तेमाल नहीं किया। मैं इसे खर्च करने वाला नहीं था। ”
दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख web series news in Hindi रहे हैं.
मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुँचे तो उन्होंने साड़ियाँ दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियाँ उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियाँ देखकर कहा- "साड़ियाँ तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?"